इस समय पाटलिपुत्र में सम्राट समुद्रगुप्त का शासन था । समुद्रगुप्त के आठ पुत्र आठ प्रान्तों में शासक नियुक्त थे। चित्तौड़ गढ़ में उनके ज्येष्ठ पुत्र रामगुप्त का शासन था।
रामगुप्त की रानी ध्रुवदेवी विश्वविख्यात सुंदरी थी। उसे पद्मावती भी कहा जाता था। रामगुप्त की राजसभा में पंडित राघव चेतन ज्योतिष और राजनीति का विद्वान् था। एक दिन जब राजा रामगुप्त और रानी पद्मावती अपने कक्ष में बैठे हुए थे तो अचानक राघव चेतन बिना आज्ञा लिए अंदर आ गए। रामगुप्त नाराज हो गए और अगले दिन उन्होंने भरी सभा में अपमानित करके देश निकाला दे दिया। राघव चेतन चित्तौर गढ़ से निकल कर सीधे दिल्ली पहुँचा। जहाँ उसने अलावादीन सिकंदर से मुलाकात की। और सिकंदर की सभा का सदस्य बन गया। मौका पाकर राघव चेतन ने पद्मावती की सुन्दरता की चर्चा की। और सिकंदर को उकसाया की वह चित्तौर पर चढाई करे । सिकंदर पद्मावती को पाने के लिए बेचैन हो गया और अपनी सेना लेकर चित्तौर की और कूच कर दिया। चित्तौर गढ़ में भी युद्ध की तैयारियां होने लगी। कुछ ही दिनों में सिकंदर चित्तौर पहुँच गया और गढ़ को चरों तरफ़ से घेर लिया। लेकिन चित्तौड़ गढ़ को भेदना आसान नहीं था। कई महीनों तक भी जब गढ़ को भेदने में सिकंदर असफल रहा तो वह बेचैन हो उठा। उसने राघव चेतन से सलाह की। राघव चेतन ने कहा, रक्षा बंधन का पर्व आने वाला है, और इसका लाभ उठाकर तुम कहला भेजो की तुम पद्मावती को अपनी बहिन मानते हो और इस पर्व पर भेंट देना चाहते हो। राजा रामगुप्त ने सिकंदर के प्रस्ताव को राजसभा में रखा। अधिकतर सभासद इसे एक धोका मानते थे और सिकंदर के प्रस्ताव को मानना नहीं चाहते थे। परन्तु कुछ ने इस प्रस्ताव को युद्ध समाप्त करने का अच्छा अवसर मानकर इसे स्वीकार करने का तर्क दिया। अंत में राजा रामगुप्त ने प्रस्ताव मान लिया और अलावादीन सिकंदर का किले में स्वागत किया गया। लेकिन रानी पद्मावती ने सिकंदर के सामने आने से मना कर दिया। सिकंदर ने कहा मैं अपनी बहिन का सम्मान किए बिना कैसे जा सकता हूँ। राघव चेतन ने प्रस्ताव दिया की यदि पद्मावती सामने नहीं आना चाहती तो सिकंदर शीशे में ही उसे देख कर उसका सम्मान कर देगा। इस बात पर राजा रामगुप्त ने पद्मावती को राजी करलिया। पद्मावती को दर्पण में देखकर सिकंदर भौचक रह गया और मन ही मन ठान लिया कि पद्मावती को पाकर रहेगा। सिकंदर वापस जाने कि तैयारियां करने लगा। सिकंदर और उसके साथियों को बाहर तक छोड़ने राजा रामगुप्त उनके साथ गए। पर बाहर पहुँचते ही सिकंदर ने राजा को बंदी बना लिया और अपने साथ ले गया। राजपूत धोका खा गए।
रामगुप्त को यातनाएं दी जाने लगीं। सिकंदर ने मांग की कि पद्मावती उसे सौंप दी जाए। उधर चित्तौड़ गढ़ में मन्त्रनाएँ होने लगी कि राजा को कैसे छुड़वाया जाए। रामगुप्त का छोटा भाई चन्द्रगुप्त जो उस समय केवल १२ वर्ष का था, बोल उठा "सिकंदर ने हमसे कपट किया, हमें भी कपट का सहारा लेना चाहिए।" चन्द्रगुप्त ने सुझाव दिया कि चुने हुए सैनिकों को स्त्रीवेश में भेजा जाए। चन्द्रगुप्त ने स्वयं रानी पद्मावती के छद्मवेश में शत्रु के खेमे में पहुँच कर शत्रु को मार डालने का प्रस्ताव किया। चन्द्रगुप्त का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया। सिकंदर को कहला भेजा गया कि रानी पद्मावती अपनी ५०० सखियों के साथ आयेगी और पहले राजा रामगुप्त से मिलेगी और फिर सिकंदर के खेमें में जायेगी। ५०० पालकियां सजाई गयीं। हरेक पालकी में एक युवा वीर को स्त्रीरूप में बिठाया गया। हरेक पालकी को उठाने वाले आठ कहार भी वीर सैनिक थे। चन्द्रगुप्त रानी पद्मावती के वेश में पालकी में बैठा। सिकंदर के घेरे में पहुँच कर सबसे पहले चन्द्रगुप्त की पालकी को राजा रामगुप्त के पास ले जाया गया। रामगुप्त को छुड़वा कर किले की ओर भेज देने के बाद चन्द्रगुप्त की पालकी को सिकंदर के खेमे में ले जाया गया। बाकि की ५०० पालकियां भी सिकंदर के ५०० सरदारों के खेमों में भेज दी गयीं। जैसे ही सिकंदर ने चन्द्रगुप्त को पद्मावती समझ कर उसका हात पकड़ना चाहा, चन्द्रगुप्त ने छुरे से वार कर दिया। और शंख बजा दिया। बाकि ५०० युवाओं ने भी ५०० सरदारों पर धावा बोल दिया। मारकाट मच गई और भयंकर युद्ध छिड़ गया। सिकंदर के बहुत सारे सरदार और सैनिक शराब के नशे में मारे गए। चन्द्रगुप्त स्वयं अपने घोडे पर भाग निकले। उनका पीछा किया गया। परन्तु घोडे को दौड़ते हुए वह किले के पास के जंगल में घुस गए। बुरी तरह से थक जाने के कारण वह पसीने से तर थे। और एक पेड़ के निचे गिर कर बेहोश हो गए। कुछ देर में एक शेर उस तरफ आया। शेर ने चन्द्रगुप्त का शरीर सूंघा और उसके पसीने को चाट कर चला गया।
चन्द्रगुप्त ने अपने राजा कि रक्षा की और पद्मावती के सम्मान को बचाया। यही चन्द्रगुप्त बाद में चन्द्रगुप्त मौर्य चक्रवर्ती सम्राट बना। उसने विक्रम संवत की स्थापना की। कलिंग युद्ध के बाद उसने अपना नम अशोक रख लिया।